रविवार, 27 मार्च 2011

लोकगीत है फिल्मी गीत को हिट कराने का फार्मूला

चित्रकूट, संवाददाता: महंगाई डायन खाय जात है तो एक नमूना है .मुन्नी बदनाम हुई के साथ ही हिट हुये गानों की श्रंखला देखिये और फिर कहिये कि क्या यह पिट सकते हैं। अरे भइया लोक धुनें तो हमारी थाती हैं इन्हें सहेजकर ही कर्णप्रिय मैटेरियल बाहर आ सकता है। इसके लिये हमें गांवों में जाकर लोक कलाकारों की पहचान करनी पड़ेगी उनको संरक्षण देने के उपाय करने पड़ेगे। तब जाकर बुंदेली हो या फिर अन्य कोई लोक विधा तभी जाकर वास्तविक गरीबों को लाभ मिल पायेगा।

बातचीत में उरई से आईं लोक कला मर्मग्य की उपाधि से विभूषित बुंदेली संगीत में शोध करने वाली डाक्टर वीणा श्रीवास्तव इतनी मुखर हो उठी कि उन्होंने पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र के संगीत से बुंदेली संगीत के पिछड़ने का कारण यहां के कलाकारों को मान लिया। उन्होंने वर्तमान व्यवस्था पर भी चोट करते हुये कहा कि लोक संगीत की थाती को सहेजकर रखने वाले अधिकतर लोग गांव से आते हैं। शहर में उन्हें पिछड़ा माना जाता है। अब कलाकार दो वक्त की रोटी के लिये जद्दोजहद करें या फिर अपने गले व हाथों से आपको मधुर स्वर लहरियां सुनायें। वैसे पिछले सात साल के सूखे ने तो यहां के लोगों के साथ ही संगीत की भी चूल्हें हिला कर रख दी वह तो भला हो आमिर खान का जिनके कानों में बुंदेली के अब मशहूर हो चुके गारी विधा के गीत 'सखि सईयां तो बहुतई कमात हैं मंहगाई डायन खाय जात है' को ओरिजनल कंपोजिशन में डालकर प्रस्तुत किया गया और बुंदेली संगीत को संजीवनी मिल गई।
अब यहां पर कलाकारों को संरक्षण देने के लिये सरकार के साथ ही सामाजिक संस्थाओं को आगे आना होगा जिससे कलाकारों के पेट रोटी के इंतजाम के साथ ही उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था हो सके। लगातार सेमिनारों और प्रशिक्षण सत्रों से यहां के बुंदेली संगीत का भला हो सकेगा।



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